दाद का आयुर्वेदिक इलाज: प्राकृतिक तरीकों से छुटकारा!
आयुर्वेद का उद्देश्य किसी भी बीमारी का इलाज उसके मूल कारण से करना है, जिसके लिए कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है, जैसे कि:
शोधन कर्म
यह एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसका उद्देश्य पित्त दोष और रक्त दोष का संतुलन बनाए रखना है।
1. विरेचन कर्म
इसमें शरीर से अतिरिक्त पित्त और विषैले पदार्थों को बाहर निकालकर शुद्ध किया जाता है। इसके चरण इस प्रकार हैं:
- स्नेहन कर्म (तेल चिकित्सा): खाली पेट सुबह पंचतिक्त घृत का सेवन कराया जाता है, जिससे शरीर में उचित चिकनाई आ सके।
- स्वेदन कर्म (पसीना चिकित्सा): पेटी स्वेदन यानी भाप चिकित्सा कराई जाती है, जो पसीना लाने और विषैले पदार्थों को बाहर करने में मदद करती है।
- विरेचन कर्म (वास्तविक शुद्धिकरण): जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयों के माध्यम से शरीर का शुद्धिकरण किया जाता है और इस प्रक्रिया की निगरानी की जाती है।
रक्तमोक्षण कर्म
यह रक्त शुद्धि की एक प्रक्रिया है जिसमें ब्लडलेटिंग (सुई से रक्त निकालना) की तकनीक का प्रयोग होता है। एक सत्र में लगभग 60 मि.ली. रक्त निकाला जाता है।
शमन चिकित्सा
इसमें जड़ी-बूटियों और खनिजों से बनी दवाइयों का उपयोग किया जाता है, जो त्वचा रोगों के इलाज में सहायक होती हैं।
उपचार में प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ – हरिद्रा (हल्दी दूध के साथ), शहद, पंचतिक्तक गुग्गुलु और दादरू।
शोधन भेषज
रक्तमोक्षण के बाद लेप (पेस्ट) का प्रयोग किया जाता है, जिसमें आमलकी, हरितकी और खदिरा जैसी औषधियों का उपयोग किया जाता है।
स्रोत:
Dhakite, Sneha & Misar Wajpeyi, Sadhana & Umate, Roshan. (2020). Effective management of Dadru (Tinea corporis) through Ayurveda - A case report. European Journal of Molecular and Clinical Medicine. 7. 1878-1886.
यह जानकारी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. अपने उपचार में कोई भी बदलाव करने से पहले अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लें। मेडविकी पर आपने जो कुछ भी देखा या पढ़ा है, उसके आधार पर पेशेवर चिकित्सा सलाह को अनदेखा या विलंब न करें।
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